Ashish Malhotra
2 min readAug 11, 2020

आज पानी को भी मैंने किनारों

आज पानी को भी मैंने किनारों पर आराम करते हुए देखा, किसी ने तो हमें उनसे प्यार करते हुए देखा।

अगर पता था तो बताया क्यूं नहीं की इश्क में कुछ पाया नहीं गंवाया जाता है। हम भी संभल जाते उनसे नजरें मिलाते वक्त, यूं बार-बार जख्म खाते हुए हमे किसी ने तो देखा।

आज पानी को भी मैंने किनारों पे आराम करते हुए देखा,….

वो आईं तो आंधी थीं, गईं तो तुफान बन गईं। उजाड़ना था तो पहले ही बता देती, यूं रोज-रोज हमसे बगीचा दिल का तो नहीं सजवाती।

कहानी अपनी भी अब पानी थी, उनके बिछड़ने से बेरंग सी अपनी जवानी थी।

दिल में जो इश्क था आजाद हो गया था, कलम उठा कर एक कोने में महफूज हो गया था।

लिखना चाहा जब भी तो उनकी तारीफ ही निकली, ये कलम भी तो उनकी अजीज ही निकली।

ये इश्क अब हमसे और नहीं था हो रहा, हम भी पानी की तरह किनारों पर आराम करना चाहते थे।

एक बार जिंदगी फिर से गले लगाओ, ये इश्क से हमारा पीछा छुड़वाओ।

दिल अब थक गया है उनके इन्तजार में, अब तो हमारे कागज का पना किसी और तक पहुंचाओ।

आज पानी को भी मैंने किनारों पे आराम करते हुए देखा,..किसी ने तो हमें उनसे प्यार करते हुए देखा।

Ashish Malhotra
Ashish Malhotra

Written by Ashish Malhotra

कलाम: संगीत ए दिल

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