कैद

Ashish Malhotra
2 min readDec 6, 2018

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मंजिलें दिखाती रास्तों पर चलता हूं मैं,होकर इच्छाओं पर सवार रास्तों पर चलता हूं मैं,लेकर कुछ इरादे रास्तों पर चलता हूं मैं,चुनौतियों से जूझता रास्तों पर चलता हूं मैं,जिम्मेदारीयों की कैद में रास्तों पर चलता हूं मैं।

भविष्य संवारना चाहता हूं पर मंजिलों से ही अनजान हूं,वर्तमान में रहता हूं पर वर्तमान से ही अनजान हूं,भूत का अनुभव समेट लिया है पर अनुभव से ही अनजान हूं,वैसे तो कैद हूं मैं पर कैद से भी अनजान हूं।

भीड़ से निकलना चाहता हूं पर भीड़ की वजह भी हूं मैं,एक ही रास्ते पर सबके साथ चलता फिर भी अलग हूं मैं,सब कुछ है पास मेरे फिर किस डर में हूं मैं,शायद अपनी इच्छाओं की ही कैद में हूं मैं।

ना जाने बेवजह ही कहां व्यस्त हूं मैं,ना जाने हर समय क्यूं प्रश्न पूछता हूं मैं,ना जाने क्यूं मैं अपने उतर स्वयम नहीं ढूंढ ता,ना जाने क्यूं मैं समाज में हूं दोष ढूंढ ता,ना जाने क्यूं मैं सत्य नहीं खोजता,ना जाने क्यूं झूठ में हूं कैद मैं।

कहां से आती है ये हवा और कहां को है ये जाती,क्यूं है ये कुछ बादल काले से और कुछ है सफेद से,क्या है ये आस पास जो हर समय है आस पास,क्या है ये रंग जो बादलों में है चमकता,क्यूं है ये पेड़ हर समय शान्त सा,क्यूं है ये रंग खूबसूरत इतना,क्यूं है परिंदों में इतना होंसला,क्या है ये रात और ये सवेरा सा,क्या है जो बोलता मेरे अन्दर,

हां हूं मैं कैद सा शायद खेल ए रिहाई ही मुझे पता नहीं।

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Ashish Malhotra
Ashish Malhotra

Written by Ashish Malhotra

कलाम: संगीत ए दिल

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