मेरी ज़िद
जब तुम्हें देखा तो दुबारा देखने को मन चाहा तुम्हें। जब तुमसे बात हुई तो पाने को मन चाहा तुम्हें। जब तुम्हारे ख्यालों नेे घेरा तो तुम्हें ही याद कर खुद को सुलाया मैंने…तुम्हें हासिल करना मेरी ज़िद बनाया मैंने।
पहली बार जब जिंदगी में अपने लिए लड़ा, तो खुद से ज्यादा तुझको चाहा मैंने। जितना खुद से लड़ता रहा उतना हीे तुझे क़रीब पाया मैंने…खुद से लड़ना मेरी ज़िद बनाया मैंने।
ये वक्त हराना चाहता था मुझे पर इस वक्त को तेरे ख्यालों से उलझाया मैंने। इस वक्त को ख़ाक में मिलाया मैंने… तेरे सपनों को मेरी ज़िद बनाया मैंने।
मैं सिर्फ तुझको पाना चाहता था इसी ज़िद से खुद को सताया मैंने। तुझ को पाना चाहता था पर कभी तेरे दिल को जीत ना पाया मैंने। इश्क़ में जीत कर भी इश्क़ नहीं पाया मैंने…मेरा इश्क़ मेरी ज़िद बनाया मैंने ।