वो थी तो तनहाई आखिर,
वो थी तो तनहाई आखिर, जब भी मिला हूं उनसे, और तनहा कर जातीं थीं।
एक दिन मिला तो सोचा पूंछ लू उनसे, कि मेरे साथ रहोगी? और उसने बोला की क्यूं नहीं बस इश्क मत करना मुझसे।
बस हमें तो मोहब्बत करनी थी उनसे, पर उनसे कहने की गुस्ताखी कैसे करते हम।
उनके साथ समय बिताना अपनी आदत बन गई, और उनकी हर आदत को अपनी आदत बनाने लग गए हम।
उनकी खुशी अपनी खुशी बन गई, उनको खुश रखना अपनी जिम्मेवारी लगने लग गई।
हम तो उनके दोस्त बनकर उनसे मोहब्बत कर रहे थे, दुनिया को भी ये मोहब्बत दिख रही थी।
वो हर बार एक बात पे आकर रुक सी जाती थी जब भी हम उनसे पूछते थे, की हम अब भी उनके दोस्त हैं?
उनकी वो खामोशी हमें उनकी मोहब्बत का इज़हार कर जाती थी, और हमने, मन ही मन उनकी हां समझ के दिल में गहरे उतार लिया उनको।
अब उनके मूंह से बस इक हां सुननी बाकी थी, पर कैसे पूछे उनसे की हम उनको उनका खुदा लगते हैं?
दिन तो अब जैसे उन्हीं से शुरू होता था, और उन्हीं से खत्म।
पर अभी तक उनकी दिल की बात उनकी जुबांन तक नहीं आई थी, और हम कुछ कर भी नहीं सकते थे।
एक दिन हमनें हिम्मत करके पूछ लिया उनको, की हम उनके खुदा हैं या नहीं?
दिल डर से दड़कने लगा। ना जाने कहीं वो दूर ना चली जाएं हमसे। उनके दूर होने का डर अब हमें सताने लगा था।
उनकी खामोशी पहली बार उनकी ना लग रही थी।
उनकी ये खामोशी अब सहन नहीं हो रही थी हमसे,
और ये खामोशी धीरे-धीरे हमारी तनहाई बन गई।
हमें तो उन्होनें पहले ही कहा था, कि इश्क मत करना उनसे। पर हम भी चोट खा कर ही समझें की,
वो थी तो तनहाई आखिर, जब भी मिला हूं उनसे, और तनहा कर जातीं थीं।